Friday, May 20, 2016

एनिमल फार्म- 8

साभार गुगल


सब कुछ बिलकुल साफ-साफ लिखा गया था। सिर्फ मित्र की जगह मितर लिखा गया और एक जगह ग उलटा लिखा गया था। बाकी सब जगह वर्तनी बिलकुल ठीक थी। स्नोबॉल ने धर्मादेश ऊँची आवाज में पढ़ कर सुनाए ताकि सब जान सकें। सभी पशुओं ने पूर्ण सहमति में अपनी मुंडियाँ हिलाईं, और जो ज्यादा समझदार थे, उन्होंने तत्काल ही धर्मादेशों को कंठस्थ करना शुरू कर दिया।
'अब, साथियो,' स्नोबॉल ने रोगन-कूची एक तरफ फेंकते हुए कहा, 'सूखी घास की तरफ कूच करो। हम उसे अपनी इज्जत का सवाल मान लें कि जोंस और उसके नौकर-चाकर जितना समय लगाते हम उससे भी पहले फसल काट लेंगे।' 
तभी तीन गाएँ बड़ी जोर से रँभाईं। ऐसा लगा, वे काफी देर से बेचैनी महसूस कर रहीं थीं। उन्हें पिछले चौबीस घंटे से दुहा नहीं गया था। उनके थन फटने-फटने को थे। थोड़ी देर तक सोचने के बाद, सूअरों ने बाल्टियाँ मँगवाईं और बहुत सफलतापूर्वक गायों को दुह लिया। उनके गोड़ इस काम के लिए एकदम अनुकूल थे। जल्द ही वहाँ झागदार मलाईदार दूध से भरी पाँच बाल्टियाँ नजर आने लगीं। कई पशु उन बाल्टियों को काफी हसरत से निहार रहे थे। 'इस सारे दूध का क्या किया जाएगा?' किसी ने पूछा।
'जोंस कभी-कभी थोड़ा-सा दूध हमारी सानी में मिला दिया करता था।' मुर्गियों में से एक ने कहा।
'दूध की चिंता छोड़िए, कॉमरेड्स,' नेपोलियन चिल्लाया, वह बाल्टियों के सामने आ गया, 'इसे भी ठौर-ठिकाने लगा दिया जाएगा। फसल ज्यादा जरूरी है। कॉमरेड स्नोबॉल आपको रास्ता दिखाएँगे, मैं बस आ ही रहा हूँ। आगे बढ़ो, कॉमरेड्स सूखी घास आपका इंतजार कर रही है।' 
 और इस तरह सभी पशु सूखी घास के मैदानों की तरफ मार्च करते हुए चले। शाम को जब वे वापस आए तो उन्होंने पाया, दूध गायब था।
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साभार गुगल






सब कुछ बिलकुल साफ-साफ लिखा गया था। सिर्फ मित्र की जगह मितर लिखा गया और एक जगह ग उलटा लिखा गया था। बाकी सब जगह वर्तनी बिलकुल ठीक थी। स्नोबॉल ने धर्मादेश ऊँची आवाज में पढ़ कर सुनाए ताकि सब जान सकें। सभी पशुओं ने पूर्ण सहमति में अपनी मुंडियाँ हिलाईं, और जो ज्यादा समझदार थे, उन्होंने तत्काल ही धर्मादेशों को कंठस्थ करना शुरू कर दिया।
'अब, साथियो,' स्नोबॉल ने रोगन-कूची एक तरफ फेंकते हुए कहा, 'सूखी घास की तरफ कूच करो। हम उसे अपनी इज्जत का सवाल मान लें कि जोंस और उसके नौकर-चाकर जितना समय लगाते हम उससे भी पहले फसल काट लेंगे।' 
तभी तीन गाएँ बड़ी जोर से रँभाईं। ऐसा लगा, वे काफी देर से बेचैनी महसूस कर रहीं थीं। उन्हें पिछले चौबीस घंटे से दुहा नहीं गया था। उनके थन फटने-फटने को थे। थोड़ी देर तक सोचने के बाद, सूअरों ने बाल्टियाँ मँगवाईं और बहुत सफलतापूर्वक गायों को दुह लिया। उनके गोड़ इस काम के लिए एकदम अनुकूल थे। जल्द ही वहाँ झागदार मलाईदार दूध से भरी पाँच बाल्टियाँ नजर आने लगीं। कई पशु उन बाल्टियों को काफी हसरत से निहार रहे थे। 'इस सारे दूध का क्या किया जाएगा?' किसी ने पूछा।
'जोंस कभी-कभी थोड़ा-सा दूध हमारी सानी में मिला दिया करता था।' मुर्गियों में से एक ने कहा।
'दूध की चिंता छोड़िए, कॉमरेड्स,' नेपोलियन चिल्लाया, वह बाल्टियों के सामने आ गया, 'इसे भी ठौर-ठिकाने लगा दिया जाएगा। फसल ज्यादा जरूरी है। कॉमरेड स्नोबॉल आपको रास्ता दिखाएँगे, मैं बस आ ही रहा हूँ। आगे बढ़ो, कॉमरेड्स सूखी घास आपका इंतजार कर रही है।' 
 और इस तरह सभी पशु सूखी घास के मैदानों की तरफ मार्च करते हुए चले। शाम को जब वे वापस आए तो उन्होंने पाया, दूध गायब था।
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साभार गुगल

पूरी गर्मियों के दौरान बाड़े का काम घड़ी की सुइयों की तरह चलता रहा। पशु खुश थे, क्योंकि उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि ऐसा संभव हो सकता है। अन्न के दाने-दाने से उन्हें बेपनाह जुड़ाव महसूस हुआ। खुशी हो रही थी। अब यह सचमुच उनका खुद का अन्न था। इसे उन्होंने खुद और अपने लिए उगाया था। किसी ईर्ष्यालु मालिक ने उन्हें यह सेंत-मेंत में नहीं दिया था। दो कौड़ी के परजीवी आदमी के चले जाने के बाद उनके पास हरेक के खाने के लिए यह बहुत था। अब उनके पास फुरसत भी ज्यादा थी, हालाँकि जानवर इसके अनुभवी नहीं थे। उनके सामने कई तरह की तकलीफें आईं। उदाहरण के लिए, अगले बरस जब उन्होंने मकई की फसल काटी तो उन्हें इसकी मड़ाई पुरातन तरीके से करनी पड़ी और भूसी निकालने के लिए फूँकें मार कर काम करना पड़ा, क्योंकि बाड़े में भूसी निकालने की कोई मशीन नहीं थी। लेकिन सूअर अपनी अक्लमंदी से और बॉक्सर अपनी गजब की ताकत से काम निकाल ही लेते। बॉक्सर सबकी आँखों का तारा था। वह जोंस के वक्त में भी कठोर परिश्रमी था। लेकिन अब लगता था, उसमें तीन घोड़ों की ताकत आ गई है। ऐसे भी दिन रहे जब पूरे बाड़े का सारा काम उसके मजबूत कंधों पर आ गया हो ऐसा प्रतीत होता था। सुबह से रात तक वह खटता रहता। कभी धकेलता हुआ, कभी खींचता हुआ। वह हमेशा उसी जगह नजर आया जहाँ काम सबसे मुश्किल होता। उसने एक युवा मुर्गे से यह तय कर लिया था कि वह उसे सुबह औरों से आधा घंटा पहले जगा दिया करे। वह दिन का नियमित काम शुरू होने से पहले, जहाँ कहीं भी सबसे ज्यादा जरूरी हो, स्वेच्छा से कुछ काम कर दिया करेगा। हरेक समस्या, हरेक बाधा के लिए उसका एक ही जवाब होता, 'मैं और अधिक परिश्रम करूँगा।' इसे उसने अपने व्यक्तिगत लक्ष्य की तरह अपना लिया था। लेकिन हर कोई अपनी क्षमता के अनुसार काम करता। उदाहरण के लिए, मुर्गियों और बत्तखों ने फसल के दौरान इधर-उधर बिखरे दाने बीन कर पाँच किलो वजन मकई बचाई। किसी ने चोरी नहीं की। कोई भी अपनी खुराक पर भुनभुनाया नहीं। पुरानें दिनों के झगड़े, चुगलखोरियाँ, जलना-भुनना, उस जीवन की सारी सामान्य बातें अब आम तौर पर गायब हो चुकी थीं। कोई भी काम से जी नहीं चुराता था। यह सच है कि मौली सुबह जल्दी उठने की आदी नहीं थी और इस आधार पर काम जल्दी छोड़ कर आ जाती कि उसके सुम में कोई कंकड़ फँस गया है। इसके अलावा बिल्ली का व्यवहार कुछ अजीब-सा था। जल्दी ही यह पाया गया कि जब भी कोई काम करने को होता, बिल्ली कहीं नजर न आती। वह लगातार कई घंटों के लिए गायब हो जाती, और फिर खाने के वक्त या एकदम शाम को सारा काम निपट जाने के बाद ही नजर आती, जैसे कुछ हुआ ही न हो। लेकिन वह एक से एक शानदार बहाने मारती। वह इतने प्यार से घुरघुर करती कि उसकी साफ नीयत पर अविश्वास करना संभव ही न होता। बेचारा बैंजामिन गधा, बगावत के बाद भी गधा ही रहा। वह पहले की ही तरह, जैसा वह जोंस के वक्त किया करता था, धीमे-धीमे अड़ियल तरीके से अपना काम किए जाता। न कभी काम से जी चुराना और न ही कभी अतिरिक्त काम के लिए स्वेच्छा से आगे आना। वह बगावत और उसके परिणामों के बारे में कोई राय जाहिर न करता। यह पूछ जाने पर कि क्या वह अब जोंस के चले जाने से पहले से ज्यादा खुश है, वह कहता, 'केवल गधे ही लंबे समय तक जीते हैं।' आज तक आप में से किसी ने मरा हुआ गधा नहीं देखा है, और दूसरों को उसके इस गोलमाल उत्तर से संतुष्ट रह जाना पड़ता।
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साभार गुगल


रविवार के दिन कोई काम न होता। नाश्ता सामान्य दिनों की तुलना में एक घंटा देर से मिलता और नाश्ते के बाद एक उत्सव होता। यह उत्सव हर हफ्ते बिना नागा मनाया जाता। सबसे पहले झंडा फहराया जाता। स्नोबॉल को औजार-घर से मिसेज जोंस का एक पुराना, हरे रंग का मेजपोश मिल गया था। उसने उस पर एक सुम और एक सींग सफेद रंग से पेंट कर दिया था। इसे फार्म हाउस के बगीचे में हर रविवार की सुबह ध्वज डंडे पर चढ़ा कर फहराया जाता। स्नोबॉल ने स्पष्ट किया कि झंडा इसलिए हरा है क्योंकि यह इंग्लैंड के हरे-भरे खेतों का प्रतीक है, जबकि सुम और सींग पशुओं के उस भावी गणतंत्र की ओर इशारा करते हैं जब मनुष्य जाति को पूरी तरह खदेड़ दिया जाएगा। झंडा फहराने के बाद सभी पशु बड़े बखार में मार्च करते हुए जाते और आम सभा के लिए इकट्‌ठा होते। इसे बैठक कहा जाता। यहाँ अगले सप्ताह के कामों की योजना बनाई जाती। संकल्प सामने रखे जाते और उन पर बहस होती। हमेशा सूअर ही संकल्प सामने रखते। पशु वोट देना तो सीख गए थे, लेकिन अपनी तरफ से कोई संकल्प रखने की बात कभी नहीं सोच पाए। स्नोबॉल और नेपोलियन बहसों में सबसे ज्यादा बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते। लेकिन यह पाया गया कि वे दोनों कभी एक-दूसरे से सहमत न होते। उनमें से कोई एक भी सुझाव रखता, दूसरा हर हालत में उसका विरोध करता। यहाँ तक कि जब यह संकल्प किया गया कि फलोद्यान के पीछे एक छोटा-सा बाड़ा उन पशुओं के आरामघर के लिए अलग रख छोड़ा जाए जो काम करने की उम्र पार कर चुके हैं, यह एक ऐसी चीज थी, जिस पर किसी को एतराज नहीं हो सकता था, लेकिन इस बात पर धुआँधार बहस हो गई कि पशुओं की प्रत्येक जाति के लिए सेवानिवृत्ति की सही उम्र क्या रखी जाए। बैठकें हमेशा ‘इंग्लैंड के पशु’ गीत के साथ समाप्त होतीं, दोपहर का समय मनोरंजन के लिए रखा जाता।
सूअरों ने साज-सामान के कमरे को अपने लिए मुख्यालय के रूप में चुन लिया था। वहाँ, शाम के वक्त वे बढ़ईगीरी, लुहारगीरी और दूसरी जरूरी कलाओं का अध्ययन उन किताबों से करते जो फार्म हाउस से उठा लाए थे। स्नोबॉल खुद को दूसरे पशुओं को संगठित करने में उलझाए रखता। इन्हें वह पशु समिति कहा करता। वह इस काम में बिना थके जुटा रहता। उसने मुर्गियों के लिए अंडा उत्पादन समिति (इसका उद्देश्य चूहों और खरगोशों को पालतू बनाना था), भेड़ों के लिए धवल ऊन आंदोलन और इस तरह की कई समितियाँ बनाईं। इसके अलावा उसने पढ़ने-लिखने की कक्षाएँ चलाईं। कुल मिला कर ये परियोजनाएँ टायँ-टायँ फिस्स हो गई। उदाहरण के लिए, जंगली जीव-जंतुओं को पालतू बनाने की कोशिश तो उसी समय ही चूँ बोल गई। वे पहले की ही तरह बर्ताव करते रहे और जब उनसे उदारता से पेश आया गया तो उन्होंने इसका फायदा उठाना शुरू कर दिया। बिल्ली पुनर्शिक्षा समिति में शामिल हो गई। कुछ दिन तक तो वह इसमें बहुत उत्साहित रही। एक दिन वह छत पर बैठ गौरैयों से बात करती दिखाई दी। वे बिल्ली की पहुँच के जरा-सी बाहर थीं। वह उन्हें बता रही थी कि सभी पशु-पक्षी अब मित्र हैं और कोई भी गौरैया उसके पंजे पर आ कर बैठ सकती है, लेकिन गौरैओं ने अपनी दूरी बनाए रखी।
अलबत्ता, पढ़ने-लिखने की कक्षाएँ खूब सफल रहीं। शरद ऋतु के आते-आते बाड़े का हर पशु कुछ हद तक साक्षर हो चुका था।

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