Friday, April 22, 2016

भाग -2 एनिमल फार्म

एनिमल फार्म

साभार गुगल


दोनों घोड़े अभी बैठे ही थे, जब बत्तख के बच्चों का झुंड कमजोर आवाज में चिंचियाता हुआ एक पंक्ति में बखार में घुसा। उनकी माँ मर चुकी थी। यह झुंड इधर-उधर लपकता-झपकता अपने लिए कोई ऐसी जगह तलाश रहा था, जहाँ उन्हें कोई बड़ा जानवर अपने पैरों तले न कुचल सके। क्लोवर ने अपने आगे के पैरों से उनके चारों तरफ एक दीवार-सी खड़ी कर दी। बत्तख के बच्चे इसके भीतर दुबक कर बैठ गए और पलक झपकते ही सो गए। सबसे आखिर में मौली आई। वह एक खरदिमाग खूबसूरत सफेद घोड़ी थी, जो जोंस की खचड़ा-गाड़ी खींचती थी। वह गुड़ की भेली मुँह में चुभलाते हुए मस्ती से आई और आगे-आगे ही बैठ गई। वह अपनी सफेद अयाल इधर-उधर लहराने लगी। वह उस पर बँधे लाल रिबनों की तरफ ध्यान आकर्षित करना चाहती थी। उसके भी बाद में बिल्ली आई। उसने हमेशा की तरह सबसे गरम जगह के लिए आसपास देखा, और बौक्सर और क्लोवर के बीच की जगह में खुद को सिकोड़ लिया। वहाँ वह मेजर के पूरे भाषण के दौरान संतुष्ट भाव से घुरघुराती रही। उसने मेजर का कहा हुआ एक भी शब्द नहीं सुना।
अब तक मोसेस, पालतू काले कव्वे के सिवाय सभी प्राणी पधार चुके थे। वह पिछवाड़े की तरफ एक टाँड़ पर सोया हुआ था। जब मेजर ने देखा कि अब सब आराम से अपनी जगह बैठ चुके हैं और ध्यान से उसकी बात का इंतजार कर रहे हैं तो उसने अपना गला खखारा और कहना शुरू किया :
‘साथियो, आप लोग कल रात के मेरे उस अजीब सपने के बारे में सुन ही चुके हैं। लेकिन मैं सपने की बात बाद में करूँगा। मुझे उससे पहले कुछ और कहना है। मुझे नहीं लगता, कॉमरेड्स कि अब मैं आनेवाले बहुत से महीनों में आप लोगों के साथ रह पाऊँगा और मरने से पहले मैं यह अपना कर्तव्य समझता हूँ कि जो कुछ बुद्धिमत्ता मैंने हासिल की है, उसे आप लोगों को देता जाऊँ। मैंने भरपूर जीवन जी लिया है। जब मैं अपने थान में अकेला पड़ा रहता था तो मुझे सोचने के लिए खूब वक्त मिला और मुझे लगता है कि मैं यह कह सकता हूँ कि मैं इस धरती पर जीवन के स्वरूप को, ढर्रे को और साथ ही साथ अब जी रहे किसी भी पशु को समझता हूँ। इसी के बारे में मैं आप लोगों से बात करना चाहता हूँ।
'साथियो, आप ही बताइए, हमारी इस जिंदगी का स्वरूप क्या है? ढर्रा क्या है? इसमें झाँक कर देखें, हमारी जिंदगी दयनीय है, इसमें कड़ी मेहनत है और हम अल्पजीवी हैं। जब हम पैदा होते हैं तो हमें सिर्फ इतना ही खाने को दिया जाता है कि हमारी ठठरियों में साँस भर चलती रहे। हममें से जो साँस भर लेने की ताकत रखते हैं, उन्हें शरीर में खून की आखिरी बूँद तक काम करने पर मजबूर किया जाता है, और उस पल के आते ही, जब हमारी उपयोगिता खत्म हो जाती है, हमें घिनौनी क्रूरता के साथ कत्ल कर दिया जाता है। इंग्लैंड में कोई भी ऐसा पशु नहीं है जो एक बरस का हो जाने के बाद खुशी का या फुरसत का मतलब जानता हो। इंग्लैंड में कोई भी पशु आजाद नहीं है। पशु की जिंदगी दुर्गति और गुलामी की जिंदगी है। यह एक कड़वी सच्चाई है।
'लेकिन क्या यह प्रकृति का एक सीधा-सादा-सा नियम है? क्या हमारी यह हालत इसलिए है कि हमारी धरती इतनी गरीब है कि यह इस पर रहनेवालों को एक शानदार जिंदगी मुहैया नहीं करा सकती? नहीं दोस्तो, नहीं। हजार बार नहीं। इंग्लैंड की मिट्टी उपजाऊ है, यहाँ की जलवायु अच्छी है। इसमें इतनी क्षमता है कि अब इस पर जितने पशु रह रहे हैं, उससे कई गुणा अधिक पशुओं का खूब अच्छी तरह से भरण-पोषण कर सकती है। हमारे अकेले बाड़े से एक दर्जन घोड़े, बीस गाएँ, सैंकड़ों भेडें, खूब आराम से, सम्मान की ऐसी जिंदगी बसर कर सकती हैं जिसकी आज हम कल्पना भी नहीं कर सकते। हम क्यों इस तंगहाली में जिए चले जा रहे हैं? क्योंकि हमारी मेहनत की कमोबेश पूरी की पूरी उपज हमसे मनुष्यों द्वारा चुरा ली जाती है और यही, साथियों, हमारी सारी समस्याओं का जवाब है। इसे सिर्फ एक ही शब्द में बयान किया जा सकता है - आदमी, मनुष्य, मानव। मनुष्य ही हमारा असली दुश्मन है। मनुष्य को सामने से हटा दीजिए और भूख और अतिश्रम की जड़ ही हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी। मनुष्य ही एक ऐसा जीव है जो बिना कुछ भी पैदा किए उपभोग करता है। वह दूध नहीं देता, वह अंडे नहीं सेता, वह इतना कमजोर है कि हल नहीं चला सकता। वह इतना तेज नहीं दौड़ सकता कि खरगोश तक पकड़ सके। फिर भी वह सब पशुओं का मालिक है। वह उन्हें काम में जोत देता है और उन्हें खाने के लिए इतना ही देता है कि वे भूखे न मरें। बाकी सब कुछ वह अपने लिए रख लेता है। हम अपनी मेहनत से मिट्टी गोड़ते हैं। हमारी लीद से, गोबर से मिट्‌टी उपजाऊ बनती है, और फिर भी हममें से एक भी ऐसा नहीं, जिसके पास अपनी चमड़ी के अलावा एक दमड़ी भी हो। आप गाएँ जो इस समय मेरे सामने बैठी हैं, आपने पिछले बरस कितने हजार लीटर दूध दिया है? और क्या हुआ उस दूध का जिसे पी कर आपके बछड़े हट्‌टे-कट्‌टे बनते हैं? उस दूध की एक-एक बूँद हमारे दुश्मनों के गले के नीचे उतरी है और तुम मुर्गियो, पिछले बरस भर में तुमने कितने अंडे दिए और उनमें से कुल कितने अंडे से कर तुमने चूजे बनाए? बाकी सारे अंडे बाजार में बिकने पहुँच गए ताकि जोंस और उसके आदमियों की कमाई हो सके। और तुम क्लोवर, क्या हुआ उन चार बछड़ों का जिन्हें तुमने जना था, और जो बुढ़ापे में तुम्हारा सहारा और आँखों का तारा बनते? साल भर का होते ही उन्हें बेच दिया गया। अब तुम उनमें से किसी को भी दोबारा नहीं देख पाओगी। बदले में तुम्हें क्या मिला? चार बार जचगियों और खेतों में कड़ी मेहनत के बदले तुम्हारे पास मामूली राशन और एक थान के अलावा और है क्या? इसके बावजूद हम जो कंगाली-बदहाली की जिंदगी जीते हैं उसे भी नैसर्गिक उम्र तक कहाँ जीने दिया जाता है? मैं अपने लिए नहीं खीझता या भुनभुनाता क्योंकि किस्मत ने थोड़ा-बहुत मेरा साथ दिया है। इस समय मैं बारह बरस का हूँ और मेरे चार सौ से भी ज्यादा बच्चे हुए हैं। एक सूअर का यही प्राकृतिक जीवन होता है। लेकिन आखिर में कोई भी जानवर इस क्रूर तलवार की मार से नहीं बच सकता। तुम जो नन्हें-मुन्ने बलिसूअर मेरे सामने बैठे हुए हो, तुम्हें माँस के लिए ही पाला जा रहा है। बरस भर बीतते-बीतते तुम सब अपनी-अपनी जान बचाते हुए चिचियाते फिरोगे। हममें से हरेक का यही बुरा हाल होना है। गायें, सूअर, मुर्गियाँ, भेड़ें, सबका। यहाँ तक कि घोड़ों और कुत्तों की जिंदगी में भी इससे बेहतर कुछ नहीं लिखा हुआ है। तुम बौक्सर, जिस दिन भी तुम्हारी इन मजबूत माँसपेशियों की ताकत खत्म हो जाएगी, जोंस तुम्हें घोड़ा कसाई के पास बेच आएगा। वह तुम्हारा गला रेतेगा और तुम्हें उबाल कर तुम्हारी बोटियाँ लोमड़ियों का शिकार करनेवाले कुत्तों के आगे डालेगा और जब कुत्ते बुढ़ा जाते हैं, उनके दाँत झर जाते हैं तो जोंस उनकी गरदन से ईंट का एक टुकड़ा बाँध देता है और उन्हें नजदीक के ताल-तलैया में ले जा कर डुबो देता है।

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