Sunday, April 24, 2016

एनिमल फार्म - 6


साभार गुगल
उनके सबसे अधिक निष्ठावान चेले गाड़ी में जोते जानेवाले दो घोड़े, बौक्सर और क्लोवर थे। इन दोनों के साथ यही सबसे बड़ी दिक्कत थी कि वे अपने आप कुछ भी नहीं सोच पाते थे। लेकिन एक बार सूअरों को अपना गुरु स्वीकार कर लेने के बाद उन्हें जो कुछ भी बताया गया, उन्होंने सब ग्रहण कर लिया, और उसे सरल तर्कों द्वारा दूसरे पशुओं तक पहुँचाया। वे बखार में होनेवाली गुप्त बैठकों में बिना नागा आते और इंग्लैंड के पशु गीत गवाते। बैठकें हमेशा इसी गीत के साथ समाप्त होती थीं।  
अब हुआ यह कि बगावत किसी की भी उम्मीद से बहुत पहले और आसानी से हासिल कर ली गई। पिछले वर्षों के दौरान मिस्टर जोंस कठोर मालिक होने के बावजूद एक समर्थ किसान था। लेकिन इधर कुछ अरसे से उसके दुर्दिन चल रहे थे। एक मुकदमे में पैसे गँवाने के बाद उसका दिल एकदम टूट गया था। उसने अपनी सेहत की परवाह किए बगैर बेतहाशा शराब पीना शुरू कर दिया था। वह सारा-सारा दिन रसोईघर में अपनी विंडसर कुर्सी पर पसरा रहता। अखबार पढ़ता, पीता रहता और कभी-कभी बीयर में भिगोए डबलरोटी के टुकड़े मौसेस को खिलाता। उसके नौकर‌‌-चाकर सुस्त और बेईमान थे। खेतों में खर-पतवार उग आई थी। इमारतों की छतें छाने की जरूरत थी, बाड़ें देखभाल माँगते थे और पशुओं को पूरा खाना नहीं मिल रहा था।
जून आ चुका था और सूखी घास की फसलें कटाई के लिए एकदम तैयार थीं। ग्रीष्म ऋतु के मध्य के रात यानी 24 जून को शनिवार के दिन मिस्टर जोंस विलिंगडन गया और ‘रेड लॉयन बार’ में बैठ कर इतनी पी कि रविवार की दोपहर तक वापस नहीं आया। उसके नौकर-चाकर सुबह-सुबह गायों का दूध दुहने के बाद खरगोशों का शिकार करने निकल गए। उन्हें इस बात की रत्ती भर भी परवाह नहीं थी कि पशुओं का दाना-पानी भी करना है। मिस्टर जोंस वापस लौटते ही तुरंत ड्राइंग रूम के सोफे पर सोने चला गया। अपना मुँह उसने ‘न्यूज ऑफ द वर्ल्ड’ अखबार से ढक लिया। इसलिए, जब शाम हुई तब भी पशु बगैर चारे-पानी के खड़े थे। हालत यह हो गई कि उनसे और रहा नहीं गया। एक गाय ने भंडारघर का दरवाजा अपने सींगों से तोड़ डाला। और सभी पशुओं ने डिब्बों, पीपों में से खुद खाना ले कर खाना शुरू कर दिया। इसी समय मिस्टर जोंस की आँख खुल गई। अगले ही पल वह और उनके चारों नौकर भंडार घर में थे। उसके हाथों में कोड़े थे। आते ही उन्होंने चारों तरफ कोड़े बरसाना शुरू कर दिया। भूखे-प्यासे पशु इससे ज्यादा बरदाश्त नहीं कर सकते थे। एक आम सहमति से, हालाँकि इस बारे में पहले से कुछ भी तय नहीं किया गया था, सब पशुओं ने अपने अत्याचारियों पर हमला बोल दिया। मिस्टर जोंस और उसके आदमियों ने अचानक पाया कि उन पर चारों ओर से घूँसों, लातों की बरसात हो रही है। स्थिति पूरी तरह उनके नियंत्रण से बाहर हो चुकी थी। इन्होंने कभी पशुओं को इस तरह का बर्ताव करते हुए नहीं देखा था। अब तक तो वे जब मन चाहा इन प्राणियों पर कोड़े फटकारने और उन्हें पीटने के ही आदी थे। इस तरह अचानक इन प्राणियों के उठ खड़े होने ने उन लोगों के तो होश ठिकाने लगा दिए। उन्हें डरा दिया।
एक-दो पलों के बीतते न बीतते वे पाँचों मुख्य सड़क की तरफ जानेवाले बैलगाड़ी के रास्ते पर जान बचाते हुए सरपट दौड़ रहे थे। उनके पीछे विजय की हुंकार भरते हुए पशु बढ़े चले जा रहे थे। 
जब मिसेज जोंस ने अपनी खिड़की से यह सब होते देखा तो उसने लपक कर एक थैला उठाया, उसमें फटाफट कुछ काम की चीजें ठूँसीं और चुपके से दूसरे रास्ते बाड़े से बाहर निकल गई। मौसेस अपनी टाँड़ से फुदका और जोर-जोर से काँव-काँव करते हुए उसके पीछे-पीछे पंख फड़फड़ाने लगा। इस बीच पशुओं ने मिस्टर जोंस और उसके आदमियों को सड़क पर खदेड़ दिया और उनके पीछे पाँच सलाखोंवाला गेट भड़ाक से बंद कर दिया। और इस तरह, इससे पहले कि वे समझ पाते कि यह क्या हो गया, बगावत की विजय का बिगुल बज चुका था। जोंस खदेड़ा जा चुका था। मैनर फार्म अब उनका था।
पहले कुछ पल तो पशुओं को अपने सौभाग्य पर विश्वास ही नहीं हुआ। उन्होंने पहला काम यह किया कि एक झुंड बना कर यह देखने के लिए बाड़े की चहारदीवारी का चक्कर लगाया कि कहीं कोई आदमी तो इस पर नहीं छुपा बैठा है। इसके बाद वे दौड़ते हुए बाड़े की इमारतों की तरफ आए ताकि वहाँ से जोंस के क्रूर शासन की चीजों का आखिरी नामो-निशान ही मिटा दें। अस्तबलों के सिरे पर बना साज-सामान का कमरा तोड़ कर खोल दिया गया। लगामें, नकेलें, कुत्तों की जंजीरें, वे डरावने चाकू-छुरियाँ जिनसे मिस्टर जोंस सूअरों और मेमनों को बधिया किया करता था, इन सारी चीजों को कुएँ में उछाल दिया गया। लगाम की रस्सियाँ, गल-फासियाँ, घोड़ों की आँखों पर बाँधी जानेवाली पट्टियाँ, अपमानजनक तोबड़े इन सारी चीजों को आँगन में जल रही कूड़े की आग के हवाले कर दिया गया। यही हाल कोड़ों का हुआ। जब पशुओं ने कोड़ों को आग की लपटों में देखा तो सब खुशी के मारे कुलाँचें भरने लगे। स्नोबॉल ने उन रिबनों को भी आग के हवाले कर दिया जिनसे हाट-बाजार के दिनों में घोड़ों की अयालों और पूँछों को अकसर सजाया जाता था।

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