Sunday, April 24, 2016

एनिमल फार्म भाग 5

साभार गुगल


तीन रात बाद जनाब मेजर नींद में ही चल बसे। उनका शव फलोद्यान के आगे दफना दिया गया।
मार्च का महीना शुरू हो चुका था। अगले तीन महीनों के दौरान वहाँ काफी गुपचुप सरगर्मियाँ चलती रहीं। मेजर के भाषण ने बाड़े के अधिक बुद्धिमान पशुओं को जीवन के एक नए नजरिए से परिचित करा दिया था। उन्हें पता नहीं था कि मेजर ने जिस बगावत की भविष्यवाणी की थी, वह कब होगी। यह सोचने के लिए उनके पास कोई कारण भी नहीं थे कि यह बगावत उनके जीते जी होगी भी या नहीं, लेकिन एक बात उनके सामने बिलकुल साफ थी कि इस बगावत के लिए खुद को तैयार रखना उनका फर्ज है। स्वाभाविक था कि दूसरों को सिखाने-पढ़ाने का और संगठित करने का कार्य भार सूअरों के कंधों पर आ पड़ा। वही थे जिन्हें आम तौर पर सभी पशुओं से ज्यादा चतुर माना जाता था। सूअरों में से भी जो ज्यादा उल्लेखनीय थे, वे स्नोबॉल और नेपोलियन नाम के दो युवा सूअर थे जिनको बधिया गया था। इन्हें मिस्टर जोंस बेचने की नीयत से पाल रहा था। नेपोलियन कद-काठी में बड़ा, दिखने में खूँखार बर्कशायर का सूअर था। वह बाड़े में बर्कशायर का अकेला जीव था। वह बहुत ज्यादा बात नहीं करता था, लेकिन अपनी मरजी के मालिक के रूप में विख्यात था। स्नोबॉल नेपोलियन की तुलना में ज्यादा जिंदादिल सूअर था। बातचीत में तेज और खूब आविष्कारशील। लेकिन उसके बारे में यह समझा जाता था कि उसमें चरित्र की उतनी गहराई नहीं है। बाड़े पर और जितने भी सूअर थे, वे सब माँस के लिए पाले जानेवाले सूअर यानी पोर्क थे। उनमें से जो सबसे ज्यादा नामी-गिरामी था, एक छोटा स्क्वीलर नाम का मोटा सूअर था। वह भरे-भरे गालों, मिचमिचाती आँखों और फुर्तीले शरीर और कर्णभेदी आवाज का मालिक था। वह बातचीत में एकदम उस्ताद था। वह जब भी किसी मुश्किल मुद्दे पर बहस करता तो फुदकता रहता और अपनी पूँछ तेजी से हिलाता रहता। वैसे उसकी पूँछ बहुत आकर्षक थी। स्क्वीलर के बारे में दूसरों का कहना था कि वह इतना माहिर है कि काले को सफेद में बदल सकता है। इन तीनों ने मिल कर जनाब मेजर के उपदेशों को एक पूर्ण विचारधारा के रूप में परिष्कृत किया और इसे उन्होंने पशुवाद का नाम दिया। मिस्टर जोंस के सो जाने के बाद सप्ताह में कई-कई रातें जाग कर वे बखार में गुप्त बैठकें करते रहे और पशुवाद के सिद्धांत दूसरों को समझाते रहे। शुरू-शुरू में उन्हें बेहद मूर्खता और उदासीनता का सामना करना पड़ा। कुछ जानवरों ने मिस्टर जोंस, जिसे वे मालिक कहते थे, उनके प्रति कर्तव्य का, निष्ठा का वास्ता दिया या इस तरह की मौलिक टिप्पणियाँ की ‘मिस्टर जोंस हमारा भरण-पोषण करता है अगर वही चला गया तो हम भूखों मर जाएँगे। दूसरों ने इस तरह के सवाल किए कि हम इस बात की चिंता क्यों करें कि हमारे मरने के बाद क्या होता है? या यदि किसी तरह यह बगावत होती है तो इससे क्या फर्क पड़ता है कि हमने इसके लिए काम किया या नहीं। उनके भेजे में यह बात बिठाने में सूअरों को खासी मेहनत करनी पड़ी कि ऐसा सोचना पशुवाद की भावना के खिलाफ है। सबसे अधिक मूर्खतापूर्ण सवाल सफेद घोड़ी मौली पूछती थी। स्नोबॉल से सबसे पहला सवाल उसने यही किया कि क्या बगावत के बाद गुड़ मिलेगा?’

‘नहीं,'नहीं,' स्नोबॉल ने कड़ाई से उत्तर दिया, ‘इस बाड़े में गुड़ बनाने के लिए हमारे पास कोई साधन नहीं है। इसके अलावा तुम्हें गुड़ की क्या जरूरत? तुम्हें जितनी चाहिए जई और सूखी घास मिलेगी।’
‘और, 'क्या मैं तब भी अपनी अयाल पर रिबन लगा सकूँगी?’ मौली ने पूछा।
‘कॉमरेड’, स्नोबॉल का जवाब था, ‘ये रिबन जिसके पीछे तुम इतनी पागल रहती हो, गुलामी के बिल्ले हैं। तुम्हें इतनी-सी बात समझ में नहीं आती कि स्वतंत्रता रिबनों से कहीं अधिक मूल्यवान होती है।’
मौली सहमत तो हो गई, लेकिन वह बहुत अधिक कायल नहीं लग रही थी।
सूअरों को पालतू काले कव्वे मौसेस द्वारा फैलाई गई झूठी-झूठी बातों का खंडन करने में खासी मेहनत करनी पड़ती। मौसेस, जो मिस्टर जोंस का मुँहलगा था, असल में जासूस था और चुगली करता रहता था। इसके बावजूद वह बातचीत में माहिर था। उसका दावा था कि वह एक ऐसे रहस्यमय पहाड़ के बारे में जानता है जिसका नाम मिसरी पर्वत है और मरने के बाद सभी जानवर वहीं पहुँचते हैं। यह पर्वत बादलों से ऊपर आकाश में कहीं स्थित है। मौसेस का कहना था कि मिसरी पर्वत पर सप्ताह के सातों दिन रविवार रहता है और तिपतिया घास तो वहाँ साल के हर मौसम में उगती है। गुड़ की भेली और अलसी की खली तो वहाँ बाड़ों पर उगती है। सभी पशु मौसेस से नफरत करते थे क्योंकि वह बातें तो बहुत बनाता था लेकिन काम कुछ भी नहीं करता था। लेकिन कुछ ऐसे भी थे जो मिसरी पर्वत पर विश्वास करते थे। सूअरों को तर्क दे कर उन्हें मनाने में खासी मेहनत करनी पड़ती कि कहीं कोई ऐसी जगह नहीं है।

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